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Showing posts from March, 2018

Gyani Pandit Ji - क्या होगा कलियुग के अंत में, जानिए...

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महर्षि व्यासजी के अनुसार कलयुग  में मनुष्यों में वर्ण और आश्रम संबंधी प्रवृति नहीं होगी। वेदों का पालन कोई नहीं करेगा। कलयुग में विवाह को धर्म नहीं माना जाएगा। शिष्य गुरु के अधीन नहीं रहेंगे। पुत्र भी अपने धर्म का पालन नहीं करेंगे। कोई किसी कुल में पैदा ही क्यूं न हुआ जो बलवान होगा वही कलयुग में सबका स्वामी होगा। सभी वर्णों के लोग कन्या बेचकर निर्वाह करेंगे। कलयुग में जो भी किसी का वचन होगा वही शास्त्र माना जाएगा। कलयुग में थोड़े से धन से मनुष्यों में बड़ा घमंड होगा। स्त्रियों को अपने केशों पर ही रूपवती होने का गर्व होगा। कलयुग में स्त्रियां धनहीन पति को त्याग देंगी उस समय धनवान पुरुष ही स्त्रियों का स्वामी होगा। जो अधिक देगा उसे ही मनुष्य अपना स्वामी मानेंगे। उस समय लोग प्रभुता के ही कारण सम्बन्ध रखेंगे। द्रव्यराशी घर बनाने में ही समाप्त हो जाएगी इससे दान-पुण्य के काम नहीं होंगे और बुद्धि धन के संग्रह में ही लगी रहेगी। सारा धन उपभोग में ही समाप्त हो जाएगा। कलयुग की स्त्रियां अपनी इच्छा के अनुसार आचरण करेंगी हाव-भाव विलास में ही उनका मन लगा रहेगा। अन्याय से धन पैदा करने वाले पु

Gyani Pandit Ji - गरुड़जी के सात प्रश्न तथा काकभुशुण्डि के उत्तर

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कलिमल नशावन ,श्री राम कथा पावन,जे नर मन से गावहीं । प्रभु पद पावन,पद रज भावन,अजय भक्ति सो पावहीं ।।         || इसमें कोई संशय नही है||                        ||ऱाम|| चौपाई : * पुनि सप्रेम बोलेउ खगराऊ। जौं कृपाल मोहि ऊपर भाऊ॥। नाथ मोहि निज सेवक जानी। सप्त प्रस्न मम कहहु बखानी॥1॥ भावार्थ:-पक्षीराज गरुड़जी फिर प्रेम सहित बोले- हे कृपालु! यदि मुझ पर आपका प्रेम है, तो हे नाथ! मुझे अपना सेवक जानकर मेरे सात प्रश्नों के उत्तर बखान कर कहिए॥1॥ * प्रथमहिं कहहु नाथ मतिधीरा। सब ते दुर्लभ कवन सरीरा॥ बड़ दुख कवन कवन सुख भारी। सोउ संछेपहिं कहहु बिचारी॥2॥ भावार्थ:-हे नाथ! हे धीर बुद्धि! पहले तो यह बताइए कि सबसे दुर्लभ कौन सा शरीर है फिर सबसे बड़ा दुःख कौन है और सबसे बड़ा सुख कौन है, यह भी विचार कर संक्षेप में ही कहिए॥2॥ * संत असंत मरम तुम्ह जानहु। तिन्ह कर सहज सुभाव बखानहु॥ कवन पुन्य श्रुति बिदित बिसाला। कहहु कवन अघ परम कराला॥3॥ भावार्थ:-संत और असंत का मर्म (भेद) आप जानते हैं, उनके सहज स्वभाव का वर्णन कीजिए। फिर कहिए कि श्रुतियों में प्रसिद्ध सबसे महान्‌ पुण्य कौन सा है और सबसे

Gyani Pandit Ji - हनुमान जयंती 2018: बजरंगबली से जुड़ें ये 9 रहस्य शायद आप नहीं जानते होंगे

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31 मार्च को हनुमान जयंती है। हनुमान जी सभी देवों में ऐसे देवता है जो अपने भक्तों के द्वारा प्रसन्न करने पर बहुत जल्द खुश हो जाते है। भक्तों के हर कष्ट को बस नाम लेने से ही हर लेते हैं भगवान हनुमान। भगवान हनुमान आज भी इस पृथ्वी पर जीवित स्थिति में भ्रमण करते हैं। पवन पुत्र बजरंगबली के जीवन के कुछ ऐसे रहस्य हैं जिनके बारें में शायद आपको नहीं मालूम होगा। हनुमान जयंती के मौके पर आइए जानते है उनके जीवन की 9 रहस्यमयी बातें। हनुमानजी के गुरू हनुमानजी मातंग ऋषि के शिष्य थे। वैसे तो हनुमान जी ने कई लोगों से शिक्षा ली थी। सूर्यदेव और नारदजी के अलावा इन्होंने मातंग ऋषि से भी शिक्षा-दीक्षा ली थी। कहते है मातंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हुआ था। ऐसी मान्यता है श्रीलंका के जंगलों में मंतग ऋषि के वंशज आदिववासी से हनुमान जी प्रत्येक 41 साल बाद मिलने आते है। हनुमानजी और भगवान राम के बीच का युद्ध हनुमान जी ने अपने प्रभु राम के साथ युद्ध भी किया था। दरअसल  एक बार भगवान राम के गुरु विश्वामित्र किसी कारणवश हनुमानजी से नाराज हो गए और उन्होंने रामजी को हनुमान जी को मौत की सजा देने को कहा।

Gyani Pandit Ji - ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

Gyani Pandit Ji - होली क्यों मनाते हैं?

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होली को ‘रंगों का त्यौहार’ कहा जाता है. हिंदू धर्म के अनुसार होली फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। होली हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है Holi Festival Celebration in Hindi. होली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन लोग आपस में रंग और पानी फैंकते है उर एक दूसरे को होली की बधाई देते हैं. बच्चे, जवान और बूढ़े सब इस त्योहार में मस्ती, गाना और डांस करते हैं. ढोल और लाउडस्पिकर में ज़ोर ज़ोर से गाने बजाते हैं और डांस करते हैं. हिन्दू धर्म के अन्य त्यौहारों की तरह होली का त्योहार भी पौराणिक और सांस्कृतिक है. होली मनाने के एक रात पहले होली को जलाया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार होली से हिरण्यकश्यप की कहानी जुड़ी है। हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा था जो अपने छोटे भाई की मौत का बदला भगवान विष्णु से लेना. था क्यूंकी भगवान विष्णु ने ही उसके छोटे भाई को मारा था. हिरण्यकश्यप ने अपने छोटे भाई का बदला लेने के लिए ब्रम्हा जी की तपस्या की और उसे वरदान भी मिल ही गया. ब्रम्हा जी से मिले इस वरदान से हिरण्यकश्यप को घमंड हो गया और खुद को ही भगवान समझ