Gyani Pandit Ji - Soul is Immortal

इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते और न अग्नि इसे जला सकती है जल इसे गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।।


आत्मा न कभी जन्म लेती है और न मरती है, न उसका शरिर के साथ जन्म होता है और न ही शरिर के मरने पर वह मरती है। आत्मा अमर है, अमित है और समय से परे है।हे अर्जुन, जो व्यक्ति यह जानता है की आत्मा अमर है, अमिट है, वह मर नहीं सकती, वह व्यक्ति किसी की मृत्यु का कारण कैसे बन सकता है। और वह किसे मरता है।जिस तरह हम हमारे पुराने वस्त्र त्याग कर नए वस्त्र धारण करते हैं, उसी तरह जीवात्मा पुराने जीर्ण-शीर्ण शरिर को त्याग कर नए शरिर को धारण कर लेती है।आत्मा न शस्त्र से मर सकती है, न आग उसे जला सकती है, जल उसे गिला नहीं कर सकता और हवा उसे सुखा नहीं सकती।आत्मा अमिट है, नित्य है, अचलायामन (immovable) है। 

यह सिद्ध है की आत्मा अमर है, निर्विकार है, इसलिए आत्मा को इस रूप में जानकर दुखी होना तुम्हे शोभा नहीं देता हे महा योद्धा अगर तुम यह भी सोचते हो की आत्मा जन्म लेती है और शरिर के साथ मरती है तब भी तुम्हे दुखी नहीं होना चाहिए।जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और जिसकी मृत्यु हुई है उसका जन्म निश्चित है, इसलिए ऐसी घटना पर शोक मानना ठीक नहीं जिसे टाला न जा सके।हे अर्जुन जीव के जन्म से पहले की जानकारी नहीं होती है, जन्म के बाद और मृत्यु से पहले की जानकारी होती है। और फिर मृत्यु के बाद की जानकारी नहीं होती। इसलिए दुखी क्यों हो रहे हो।
कुछ लोग आत्मा को आश्चर्य से देखते हैं, कुछ उसकी आश्चर्य से चर्चा करते हैं, कुछ सुनते हैं की आत्मा बहुत निराली है। कुछ यह सब सुन ने के बाद भी उसके बारे में कुछ नहीं जानते हैं।हे अर्जुन यह आत्मा जो हर शरिर में है वह अमर है, इसलिए तुम किसी भी जीव के लिए दुखी मत हो।
भक्तजनों , श्री कृष्ण अर्जुन को आत्मा की अमरता के बारे में बड़े विस्तार से समझाते हैं। आत्मा न किसी शस्त्र से मर सकती है और न आग से जल सकती है। वह अमर है। वह न जन्म लेती है और मृत्यु को प्राप्त होती है। सवाल आता है की आत्मा में ऐसा क्या है की वह अमर है। क्यों शरिर नश्वर है और क्यों आत्मा किसी भी तरह से मर नहीं सकती है।
भक्तजनों किसी भी वस्तु के नष्ट होने के लिए दो कारणों में से किसी एक का होना जरुरी है। कोई भी वस्तु या तो उसी की तरह की किसी दूसरी वस्तु से ख़त्म हो सकती है या फिर उस वस्तु के उलट की किसी वस्तु से। जैसे आग पानी से बुझ सकती है और हीरे को हिरा ही काट सकता है। आग को आग नहीं जला सकती और हीरे को लोहा नहीं काट सकता। इस पूरी सृष्टि में हर वस्तु इस तरह किसी न किसी वस्तु से निरंतर नष्ट हो रही है। हमारे शरिर में कई बदलाव आते रहते हैं और लगातार कई सरे cells ख़त्म होते रहते है। कई साल बाद शरिर इतना बीमार हो गया होता है की मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। हर वस्तु का दूसरी वस्तु पर विपरीत प्रभाव पड़ता रहता है और इस पूरी सृष्टि में आप किसी भी वस्तु को सारी वस्तुओं से दूर नहीं कर सकते यह असंभव है और इसलिए उसका नष्ट होना टाला नहीं जा सकता।

इसके बिलकुल विपरीत आत्मा है। न आत्मा जैसी कोई दूसरी आत्मा है और नहीं आत्मा से अलग कुछ और इस सृष्टि में है। तो फिर आत्मा को नष्ट कौन कर सकता है। अपने आप कोई वस्तु नष्ट नहीं हो सकती। आप सोंच रहे होंगे की आत्मा से अलग हम लोग हैं तो सही, यह सूरज, चाँद वगैरह है तो सही। क्या आत्मा इनके संपर्क में आने के बाद नष्ट नहीं हो सकती। इसे समझने के लिए मैं आपको एक उधाहरण देता हु, आप वैसा ही imagine करिए।
मान लीजिये के एक विशाल समुद्र है। पानी से लाबा लब भरा हुआ। न सूरज है और न चाँद है और न ज़मीन है। उस समुद्र में कई बड़े बड़े बर्फ के टुकड़े तैर रहे हैं। हजारो लाखो टुकड़े तैर रहे हैं। किसी बर्फ के टुकड़े का आकार पहाड़ जैसा है तो किसी का मनुष्य जैसा, किसी का कोई जानवर जैसा। जब यह बर्फ के टुकड़े एक दुसरे से टकराते हैं तो टूट कर भिखर जाते हैं। समुद्र का तापमान बहुत कम है इसलिए बिखरे हुए टुकड़े फिर जुड़ जाते है। अब आप सोंचिये की पानी से एकदम अलग आकर और प्रकृति वाले कई बर्फ के टुकड़े उस समुद्र में तैर रहे हैं। लेकिन क्या यह टुकड़े उस समुद्र के पानी को नष्ट कर सकते हैं। नहीं कर सकते क्योंकि भले ही दिखने में वे अलग से लगते हो लेकिन वो है तो पानी ही। पुरे समुद्र में पानी ही पानी है और वो किसी और के संपर्क में आ ही नहीं रहा है तो फिर नष्ट कैसे होगा।
बस यही बात हम पर भी लागु होती है, हम लोग दिखने में भले ही अलग अलग लगते हो लेकिन हम सब उस आत्मा से ही बने हैं इसलिए हमारे मरने पर हमारे आकार बदल जाते हैं लेकिन उस से आत्मा में कोई फर्क नहीं आता है। सिर्फ आत्मा ही आत्मा है सब दूर। न सूरज है और न चाँद है और न कोई और वस्तु, सिर्फ आत्मा के अलग अलग आकार हैं बस। जब सब दूर सिर्फ आत्मा ही आत्मा है तो फिर वो नष्ट कैसे होगी और मृत्यु के बाद जाएगी कहाँ पर और जन्म कहाँ पर लेगी। वो तो अनंत है, किसी और वस्तु के लिए जगह ही नहीं है।


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