Gyani Pandit Ji-सफला एकादशी (13-Dec-2017 )
सफला एकादशी व्रत कथा ...
सफला एकदशी पारंपरिक हिंदू कैलेंडर में 'पॉश' महीने के दौरान कृष्ण पक्ष के 'एकदशी' (11 वें दिन) पर मनाया गया शुभ उपवास है। इस एकदाशी को 'पॉसा कृष्ण एकदशी' भी कहा जाता है। यदि आप ग्रेगोरीयन कैलेंडर का पालन करते हैं तो इसे दिसंबर से जनवरी के महीनों के बीच मनाया जाता है। सफ़ल एकदशी का दिन हिंदुओं के लिए पवित्र है क्योंकि यह माना जाता है कि इस दिन ईमानदारी से उपवास करके भक्त अपने पापों को दूर कर सकते हैं और आनंदित जीवन का आनंद उठा सकते हैं। एकदशी एक श्रद्धेय दिन है जो हर चंद्र हिंदू माह में दो बार आती है और इस दिन विश्व के संरक्षक भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
सफला एकादशी 2017(Saphala Ekadashi 2017)
साल 2017 में सफला एकादशी व्रत, 13 दिसंबर को है।
सफला एकादशी व्रत विधि (Saphala Ekadashi Vrat Vidhi in Hindi)
पद्म पुराण के अनुसार सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु का विधि- विधान व विशेष मंत्रों के साथ पूजन किया जाता है। सफला एकादशी के दिन उपवास करना चाहिए। दीप, धूप, नारियल, फल, सुपारी, बिजौरा, नींबू, अनार, सुंदर आंवला, लौंग, बेर, आम आदि से भगवान श्रीहरि की आराधना करनी चाहिए।
पूजा करने बाद भगवान विष्णु की आरती कर भगवान को भोग लगाना चाहिए। भोग लगाने व प्रसाद वितरण के बाद ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए। पद्म पुराण के अनुसार सफला एकादशी के दिन दीप दान करने का विशेष विधान है।
सफला एकादशी का व्रत अपने नाम के अनुसार फल देता है। हिन्दू धर्मानुसार इस व्रत के पुण्य से मनुष्य के सभी कार्य सफल होते हैं और उसके पाप खत्म हो जाते हैं।
सफला एकदशी का महत्व
सफला एकदशी का महत्व ‘ब्रह्मांडा पुराण' में धर्मराज युधिष्ठिर और भगवान कृष्ण के बीच बातचीत के रूप में वर्णित है। हिंदू ग्रंथों के मुताबिक यह कहा जाता है कि 100 राजसूया यज्ञ और 1000 अश्वमेधि यज्ञ मिल कर भी इतना लाभ नहीं दे स्सकते जितना सफला एकदशी का व्रत रख कर मिल सकता हैं। सफला एकदशी का दिन एक ऐसे दिन के रूप में वर्णित है जिस दिन व्रत रखने से दुःखों की समाप्ति होती है और भाग्य खुल जाता है। सफला एकदशी का व्रत रखने से व्यक्ति को अपनी साड़ी इच्छाओं और सपनों को पूरा करने में मदद मिलती हैं।
व्रत कथा-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि एक महिष्मान नाम का राजा था, उसके चार पुत्र थे। राजा का सबसे बड़ा पुत्र लुम्पक महापापी था। वो हमेशा बुरे काम करता था और पिता का धन व्यर्थ करता रहता था। इसके साथ ही वो ब्रह्मणों की निंदा और उन्हें परेशान किया करता था। उसके पिता को इन कर्मों के बारे में पता चला तो उन्होनें अपने राज्य से लुम्पक को निकाल दिया। लुम्पक को तब भी समझ नहीं आया और उसने अपने पिता की नगरी में चोरी करने की ठान ली। वो दिन में राज्य से बाहर रहता था और रात में जाकर चोरी करता था।
राजा के सिपाही उसे पकड़ते लेकिन उन्हीं का पुत्र मानकर छोड़ देते थे। उसके पाप बढ़ते जा रहे थे अब वो लोगों को नुकसान भी पहुंचाने लगा था। जिस वन में वो रहता था, वहां वो एक पीपल के पेड़ के नीचे रहता था। पौष माह की दशम तिथि के दिन वो ठंड से बेहोश हो गया। अगले दिन जब उसे होश आया तो कमजोरी के कारण वो कुछ भी नहीं खा पाया और आस पास मिले फल उसने पीपल की जड़ में रख दिए। इस तरह से अनजाने में उससे एकादशी का व्रत पूरा हो गया। इससे भगवान प्रसन्न होते हैं और उसके सभी पाप माफ कर देते हैं। जब उसे पता चलता है कि मुझसे ये कर्म हो गया है तो उसे गलती का अहसास होता है और अपने पिता से माफी मांगता है। राजा उसे माफ कर देते हैं।
श्री हरी आपका दिन मंगलमय् करें - 🌅👏
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