Gyani Pandit Ji - चार दिनों की प्रीत जगत में चार दिनों के नाते हैं।
चार दिनों की प्रीत जगत में चार दिनों के नाते हैं।
पलकों के पर्दे पडते ही सब नाते मिट जाते हैं।
जिनकी चिन्ता में तू जलता वे ही चिता जलाते हैं।
जिन पर रक्त बहाये जलसम जल में वही बहाते हैं।
घर के स्वामी के जाने पर घर की शुद्धि कराते हैं।
पिंड दान कर प्रेत आत्मा से अपना पिंड छुडाते हैं।
चौथे से चालीसवें दिन तक हर एक रस्म निभाते हैं।
म्रतक के लौटआने का कोई जोखिम नही उठाते हैं।
आदमी के साथ उसका खत्म किस्सा हो गया।
आग ठण्डी हो गई चर्चा भी ठण्डा हो गया।
चलता फिरता था जो कल तक।
बनके वो तस्वीर आज लग गया दीवार पर मजबूर कितना हो गया।
पलकों के पर्दे पडते ही सब नाते मिट जाते हैं।
जिनकी चिन्ता में तू जलता वे ही चिता जलाते हैं।
जिन पर रक्त बहाये जलसम जल में वही बहाते हैं।
घर के स्वामी के जाने पर घर की शुद्धि कराते हैं।
पिंड दान कर प्रेत आत्मा से अपना पिंड छुडाते हैं।
चौथे से चालीसवें दिन तक हर एक रस्म निभाते हैं।
म्रतक के लौटआने का कोई जोखिम नही उठाते हैं।
आदमी के साथ उसका खत्म किस्सा हो गया।
आग ठण्डी हो गई चर्चा भी ठण्डा हो गया।
चलता फिरता था जो कल तक।
बनके वो तस्वीर आज लग गया दीवार पर मजबूर कितना हो गया।
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